उपमा अलंकार
जिस जगह दो वस्तुओं में अन्तर रहते हुए भी आकृति एवं गुण की समानता दिखाई जाए उसे उपमा अलंकार कहा जाता है।
- उदाहरण
सागर-सा गंभीर ह्रदय हो,
गिरी- सा ऊँचा हो जिसका मन।
गिरी- सा ऊँचा हो जिसका मन।
- इसमें सागर तथा गिरी उपमान, मन और ह्रदय उपमेय सा वाचक, गंभीर एवं ऊँचा साधारण धर्म है
जिस जगह उपमेय पर उपमान का आरोप किया जाए, उसअलंकार को रूपक अलंकार कहा जाता है, यानी उपमेय और उपमान में कोई अन्तर न दिखाई पड़े।[1]
- उदाहरण
बीती विभावरी जाग री।
अम्बर-पनघट में डुबों रही, तारा-घट उषा नागरी।
अम्बर-पनघट में डुबों रही, तारा-घट उषा नागरी।
- यहाँ पर अम्बर में पनघट, तारा में घट तथा उषा में नागरी का अभेद कथन है।
उत्प्रेक्षा अलंकार
- जिस जगह उपमेय को ही उपमान मान लिया जाता है यानी अप्रस्तुत को प्रस्तुत मानकर वर्णन किया जाता है। वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
- यहाँ भिन्नता में अभिन्नता दिखाई जाती है।[1]
- उदाहरण
सखि सोहत गोपाल के, उर गुंजन की माल
बाहर सोहत मनु पिये, दावानल की ज्वाल।।
बाहर सोहत मनु पिये, दावानल की ज्वाल।।
- यहाँ पर गुंजन की माला उपमेय में दावानल की ज्वाल उपमान के संभावना होने से उत्प्रेक्षा अलंकार है।
अतिशयोक्ति अलंकार
जिस स्थान पर लोक-सीमा का अतिक्रमण करके किसी विषय का वर्णन होता है। वहाँ पर अतिशयोक्ति अलंकार होता है।
- उदाहरण
- यहाँ पर हनुमान की पूँछ में आग लगते ही सम्पूर्ण लंका का जल जाना तथा राक्षसों का भाग जाना आदि बातें अतिशयोक्ति रूप में कहीं गई हैं।
विरोधाभास अलंकार
- उदाहरण
- बैन सुन्या जबतें मधुर, तबतें सुनत न बैन।
- यहाँ 'बैन सुन्या' और 'सुनत न बैन' में विरोध दिखायी पड़्ता है जबकि दोनों में वास्तविक विरोध नहीं है।
भ्रान्तिमान अलंकार
उपमेय में उपमान की भ्रान्ति होने से और तदनुरूप क्रिया होने से भ्रान्तिमान अलंकार होता है।
- उदाहरण -
नाक का मोती अधर की कान्ति से, बीज दाड़िम का समझकर भ्रान्ति से।
देखकर सहसा हुआ शुक मौन है। सोचता है अन्य शुक यह कौन है?
उपरोक्त पंक्तियों में नाक में तोते का और दन्त पंक्ति में अनारके दाने का भ्रम हुआ है, इसीलिए यहाँ भ्रान्तिमान अलंकार है।
सन्देह अलंकार
जहाँ उपमेय के लिए दिये गए उपमानों में सन्देह बना रहे तथा निश्चय न किया जा सके, वहाँ सन्देह अलंकार होता है।
- उदाहरण -
सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है।
सारी ही की नारी है कि नारी की ही सारी है।
मानवीकरण अलंकार
जहाँ जड़ वस्तुओं या प्रकृति पर मानवीय चेष्टाओं का आरोप किया जाता है, वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है।
उदाहरण-
फूल हंसे कलियां मुसकाईं।
यहाँ फूलों का हँसना, कलियों का मुस्कराना मानवीय चेष्टाएँ हैं। अत: मानवीकरण अलंकार है।
No comments:
Post a Comment
Thank u for your valuable comments