Tuesday, 5 July 2016

स्पेसक्राफ्ट 'जूनो' पांच साल का सफर पूरा कर जूपिटर ऑर्बिट में पहुंचा


अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का स्पेसक्राफ्ट 'जूनो' पांच साल का लंबा सफर तय कर जूपिटर (बृहस्पति) की कक्षा में पहुंच गया है. जूनो के चीफ साइंटिस्ट स्कॉट बोल्टन के अनुसार यह नासा का सबसे मुश्किल काम था. यान ने 05 जुलाई 2016 रात 11 बजकर 53 मिनट पर (अंतरराष्ट्रीय समयानुसार तड़के तीन बजकर 53 मिनट पर) बृहस्पति की कक्षा में प्रवेश किया.


मानवरहित अंतरिक्षयान जूनो पांच साल पहले फ्लोरिडा के केप केनवेराल से प्रक्षेपित किया गया.

जूनो के बारे में- 

मानवरहित अंतरिक्षयान जूनो अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा द्वारा सौर मंडल के पाँचवे ग्रह, बृहस्पति, पर अध्ययन हेतु 5 अगस्त 2011 को पृथ्वी से छोड़ा गया एक अंतरिक्ष शोध यान है. जूनो टेनिस कोर्ट के आकार जैसा एक अंतरिक्ष यान है. इसका भार लगभग साढ़े तीन टन है.जूनो बृहस्पति के आस-पास ऐसी परिक्रमा कक्षा में स्थान लेगा जो इसे उस ग्रह के ध्रुवों के ऊपर से ले जाया करेगी. इस पर हाइड्रोजन धातु के रूप में मौजूद है. जूपिटर की कक्षा में पहुंचने के लिए जूनो ने 5 वर्षों में करीब 280 करोड़ किलोमीटर का सफर तय किया.जूनो यान की एवरेज स्पीड 38 हजार किलोमीटर प्रति घंटा है. लेकिन जूपिटर के करीब पहुंचने पर इसकी रफ्तार 2 लाख 66 हजार किलोमीटर प्रति घंटा हो जाएगी.नासा का यह जूनो स्पेसक्राफ्ट बृहस्पति ग्रह की बनावट, वहां के मौसम, चुंबकीय क्षेत्र की जानकारी पृथ्वी की ओर ट्रांसमिट करेगा. जूनो यह भी पता लगाने की कोशिश करेगा कि क्या गैस जायंट माने जाने वाले जूपिटर प्लैनेट की गैस की परत के नीचे कोई पथरीला केंद्र है या नहीं. फरवरी 2018 तक इस यान का ग्रह की खोज का अभियान पूरा होगा.फरवरी 2018 में, ग्रह की 37 परिक्रमाएँ पूरी होने पर इस यान को धीमा कर के बृहस्पति के वायुमंडल में घुसाकर ध्वस्त कर दिया जाएगा.वातावरण में आक्सीजन और हाइड्रोजन की मात्राओं का अध्ययन करके पानी की मात्रा का भी अंदाज़ा लगाने का प्रयास किया जाएगा.जूनो के सामने चुनौती बृहस्पति ग्रह के भयानक बादलों को घेरे हुए इसके विकिरण बेल्ट में सही दशा-दिशा में बने रहने की है.उल्लेखनीय है कि इस अभियान से 20 साल पहले 1996 में गेलेलियो मिशन को बृहस्पति ग्रह पर भेजा गया था.

जूपिटर के बारे में -



बृहस्पति (ज्यूपिटर) एक टाइम कैप्सूल की तरह है. बृहस्तपति यानी जूपिटर हमारे सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है.रोमन सभ्यता ने अपने देवता जूपिटर के नाम पर इसका नाम रखा.जूपिटर एक चौथाई हीलियम के साथ मुख्य रूप से हाईड्रोजन से बना हुआ है.बृहस्पति ग्रह का आकार 1300 पृथ्वियों के बराबर है. जबकि इसका वज़न पृथ्वी से 360 गुना ज्यादा है.यह कोई ज़मीन यानी सरफेस नहीं है, बल्कि ये मूल रूप से गैस से बना ग्रह है.ग्रह पर गैस की अधिकता की वजह से इसे 'गैस जायंट' भी कहा जाता है.यह चार गैसीय ग्रहों में (सैटर्न, यूरेनस, नेप्च्यून, जूपिटर) में सबसे बड़ा है.

मिशन का उद्देश्य-

1 अरब डॉलर से अधिक लागत वाले इस अभियान का उद्देश्य बृहस्पति के विकिरण बेल्ट में प्रवेश करते हुए इस ग्रह का अध्ययन एवं विश्लेषण करना है.जूनो बृहस्पति के कोर का पता लगाने के लिए उसके चुंबकीय और गुरुत्वीय क्षेत्रों का नक्शा खींचेगा.साथ ही यह ग्रह की बनावट, तापमान और बादलों को भी मापेगा और पता लगाएगा कि कैसे इसकी चुंबकीय शक्ति वातावरण को प्रभावित करती है.इसका द्रव्यमान पृथ्वी की तुलना में 300 गुना अधिक है इसलिए इसका गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र अत्यंत प्रबल है.जिसके कारण यह इस पर मौजूद सभी सामग्रियों को धारण किए हुए है.इसके अध्ययन से हमारे सौर तंत्र के विकास के विषय में जानकारी मिल सकती है.

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